गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

नव वर्ष

बीता वर्ष , गया संघर्ष
नूतन वर्ष .मनाओ हर्ष
खुशियों की सौगात लिए
कलियों की बारात लिए
रंग बिरंगे फूल खिलें हैं
उपवन उपवन हिलें मिलें हैं ,
आशाओं से झूम रहा मन ,
कितनें सपनें देख रहा मन ।
नन्हीं छोटी खुशियाँ अपार
देख सकें यदि आर पार
कैसा भी भी हो मन का विकार
जगमग जगमग हर प्रकार
पुलकित अंग अंग ,मन की उमंग
झिलमिल ,झिलमिल हर तरंग .
नूतन वर्ष , मनाओ हर्ष .

रविवार, 26 दिसंबर 2010

एयर फ़ोर्स का फ़ोर्स

चेन्नई के ऐरफोर्स स्टेशन में, सर्दी की छुट्टियाँ ,
बालकनी में खड़ा मैं देख रहा था,
कालोनी की गतिविधियाँ ,
अनुशाशन में खड़े ऊंचें लम्बे पेड़ों की कतारें ।
शांत, नीरव, सजी साफ़ सुथरी सडकें ,
सजे धजे एक से बंगले हर के बंगले सामने ,
छोटी बड़ी चमकती कारें,स्कूटरें
भोर से सुबह, सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम,
शाम से रात, गुज़रती रही आँखों के सामने से कायनात ।
स्कूल, बच्चे, जिम, मोर्निंग -ईवनिंग वाक्
बौंसिंग, ठहाके, जानदार पार्टियाँ, हँसी -ठिठोल
आकाश में उड़ते जहाज़ों की
आसमान को छू लेने ललक ,
नीचे घरों में जाँबांजों के साथ मिले
पलों को भर पूर जी लेने की चहक
ऐरफोर्स स्टेशन में योध्हा एक नहीं है
उनका पूरा परिवार है, एक सीमा पर तैनात,
एक आकाश में उड़ाने का अभ्यास करता है
तो दूसरा नीचे अपने साहस से हौसला बढ़ाता है
वीरांगनाओं के फ़ोर्स से ही ऐरफोर्स चलता है


Hats off to all families of Air Force
They are different, their courage makes them different and this makes a great difference
That is Air Force

शनिवार, 27 नवंबर 2010

बचपन के वे प्यारे दिन

जीवन में वे प्यारे दिन हैं जो फिर लौट कर नहीं आते .आती हैं उनकी यादें .माता पिता का प्यार दुलार और मस्ती। अपनी जिदें ,,गुस्सा होना ,लोटना , माँ क आँचल पकड कर न छोड़ने का सरल आग्रह .डांट फटकार,उनका मनाना ,दुलारना , भाई बहनों की नोकझोंक । आँखें बंद कीजिये और देखिये अनेक भौतिक सुविधाओं की कमी के बीच आपकी आँखों में बचपन क कौन सा चित्र उभर रहा है ? बचपन यानी जीवन के शुरू के दस वर्ष ,
आज बाल दिवस के अवसर पर मैं उन सब लोंगों से बात करना चाहती हुईं जो किसी न किसी रूप में नन्हें मुन्ने छोटे बच्चों से जुड़ें हैं .मैंने भी एक लंबा जीवन जिया है .अक्सर सोचतीं हूँ कहाँ खो गया है उनका बचपन ?कहाँ चली गई है उनकी वह बेफिक्री ? वह भोलापन , कहाँ चली गई है वह चंचलता ?
मुझे तो लगता है वीडियो ,रेडियो , फिल्मों , किती पार्टियों ,अपने अहम की तुष्टि के लिए माता पिता दोनों की घर से बाहर निकल कर की जाने वाली नौकरियों ने उनके बचपन के इर्द -गिर्द Aइसी लोहे की दीवार खींच दी है की वह नन्हा सा बचपन उसमें अपना दम तोड़ रहा है । माता पिता उसे देख नहीं पा रहे हैं .उनकी तड़प समझ नहीं पा रहे हैं .वे समझतें हैं की बच्चों की मांगें पूरी कर देना ही प्यार है .बड़े से दादे महंगें उपहार ,सुविधाएँ प्रदान कर देना ही प्यार है । लेकिन ऐसा नहीं हैं .बड़े हो कर वह ये सब बातें भूल जाता है .याद रहता है तो केवल माता पिता का सानिध्य . उनके साथ बिताया हुआ समय । साथ बैठ कर ,लेट कर कहानियों का सुनना ,प्यार से गोद में उठाना ,हृदय से लगाना , लाड करना . ये सब उन्हें भावात्मक रूप से मजबूत बनाता है ।
ज़रा गौर से सोचिये ---एक पल शांत होकर बैठिये --कौन देख रहा है उनका बचपन ?कौन झुला रहा है उनको झूले ?कौन सुना रहा है उनको लोरियां ?कहानियां ?कौन बन रहे है उनके मित्र ?---आया ,,नौकर .टेलीविजन ,फिल्मी गाने ?ये संस्कार डालने के दिन हैं जो केवल आप दे सकतें हैं हॉस्टल और करेश नहीं। उन्हें जरूरत बाल मेलाओं की नहीं है जो साल में एक बार आता है .उन्हें जरूरत ढेरों पैसे लुटा कर अपने अहम को संतुष्ट करने की नहीं है .बहुत कम दिन हैं सिर्फ शुरू के दस वर्ष बचपन के दिन । ये वे मजबूत धागें हैं जो जीवन भर के उसे आपको जोड़ देतें हैं भावनाओं के उस अटूट बंधन में जो सात समंदर पार से भी उसे आप तक खींच लायेंगे .आप क्या ये थोडा सा समय दे पायेंगे ?

स्वतंत्रता और दायित्व-बोध

स्वतंत्रता को उत्तरदायित्व से अलग नहीं रखा जा सकता । स्वतंत्रता सापेक्ष है .जब इसे स्वयम के पक्ष में देखा जाये तो यह और भी अधिक मर्यादित तथा संवेदनशील हो उठती है। Aआज़ादी हमें विवेक से चुनाव करने का अधिकार देती है .मनमानी करने का नहीं । नियंत्रण और मार्ग दर्शन , नैतिक मूल्यों से ,सामाजिक वातावरण की सद्भावना से प्रेरित होकर अपनी इच्छानुसार कार्य चुनने और करने की स्वतंत्रता ही सच्ची स्वतंत्रता है ।
एक इकाई है व्यक्ति किसी परिवार की , समाज की । और बाकी सभी सम्बन्ध उसमें उसी प्रकार गुंथें हैं की उससे अलग ही नहीं किया जा सकता .माता -पिता , भाई -बहन,बाबा -दादी ,बुआ -फूफा उनके परिवार ,मित्र ,बंधू बांधव , सहयोगी, लम्बी फेहरिस्त हो सकती है किसे छोड़ा जाय ? यह असंभव है , इसलिए सबके हितों का ध्यान रखते हुए जो सबसे अधिक निकट हो उसे और व्यक्तिगत रूचि ,इच्छा की भी पूर्ति करती हो वही स्वतंत्रता है , वही वांछनीय है ,करनीय है ,प्रशंशनीय है इसमें कोई दो राय नहीं .

शनिवार, 14 अगस्त 2010

अनुरोध

स्वाधीनता दिवस के शुभ अवसर पर आप सब को बधाई ।
स्वाधीनता हमारी आन ,बान, और शान है .हर वर्ष इसी दिन हम झंडे को फहरा कर अपने देश की स्वतंत्रता को बनाये रखने की शपथ लेतेंहैं .इस बात को तो हम सब जानतें हैं की देशभक्तों के अनेक बलिदानों के फलस्वरूप
अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा .और हमने अपनी मात्री भूमि
के खुले आकाश में अपने तिरंगे झंडे को लहराया ।
लेकिन यह भी सच है की यदि हम जागरूक और सावधान नहीं रहेगें ,स्वार्थ से
घिरे रहेंगे . भाषा,प्रान्त,जाती पांति,के भेद भाव ,नक्सलवाद ,आतंकवाद को
पनपने देंगे तो इस स्वतन्त्रता को बचा न पायेंगे .हमें अपनों से ही ज्यादा
ख़तरा है । देश विरोधी तत्व हमेशा अलगाव की बातें करतें हैं .इससे
टूटेगा और हम फिर पराधीन हो जायेगें .इसलिए जो अलगाव की बातें करतें
हैं उनको देश द्रोही की संज्ञा देनी चाहिए । अंग्रेजों ने इतने दिनों तक शासन
किया उन्होंने यही नीति तो अपनाई " फूट डालो और शासन करो " .इसलिए सबसे पहले तो यह सोचना चाहिए की हम सावधान और सतर्क रहें .आपसी
भाईचारा और एकता बनाये रखें .आने वाली हर समस्या का सकारात्मक समाधान खोजें और प्रगति के पथ पर बढें ।
जागरूक हों ,हो आपस में भाईचारा ।
लहर लहर लहराए तिरंगा झंडा प्यारा ।
कदम कदम हो साथ ,बढ़े यह देश हमारा ।
रग रग में भर जाये ,यही संदेश हमारा ।

रविवार, 25 अप्रैल 2010

लोग कहतें हैं

लोग कहतें सपने तो देखा करो,
कुछ तो पूरे ह्होंगे कभी ये सोचा करों
पीछे मुड़ कर न देखो ,आगे बढ़ते चलो
लोग कहते हैं सपने तो देखा करों। ,

धुन लगी ही रही ,धुन लगी ही रही।
धन कमाने में मेरा ये दरबार छूटा
सभी द्वार छूटे और घर बार छूटा,
दिन फिसलते रहे उम्र बढ़ती रही।

'बिल्डिंगें 'बन चली और ऊंचीं हुईं ,
,सांस रुकने लगी दम भी घुटने लगा ,
सफ़र में अकेले ,तन्हाँ होता गया ,
राह चलते चलते मैं थकता गया ,

समय की कमी है , रुकना मुमकिन नहीं
राह चलना है , चलना है ,चलते रहे
मिल गया संसार ,फिर भी मगर ,
क्यों भटकता है मन , क्यों मचलता है मन

मिल गया सारा संसार फिर भी मगर ,
राह चलते रहे , हाथ मलते रहे .

सोमवार, 29 मार्च 2010

हिसाब किताब {क्रमश;]

मुझसे रहा नहीं गया .मैं दरवाजा खोल कर तेज़ी से प्राइवेट वार्ड की ओर बढ़ा .उसकी माँ रो रही थी .'डाक्टर साहब उसकी आँखें ,उसकी आवाज़ ,उसका भाव ---वह - राहुल नहीं ---सोमेश है डाक्टर .मेरे हजबैंड विवेक का बिजनेस पार्टनर .वह कह रहा है 'मुझे पहचानो --देखो मेरी आँखे --आप सब ने मेरे बिजनेस , मेरे हक का .,पचास लाख तीन हज़ार रुपया धोखा दे कर ले लिया था याद कीजिए स्विमिंग पूल में डूबने से सोमेश की मौत हुई थी .धक्का किसने दिया था ?तुम समझ ही गई होगी? इतने वर्षों की बीमारी में मैंने एक एक पाई वसूल ली है बीएस यही आखिरी तीन हज़ार बच रहें हैं और फिर मेरा हिसाब किताब पूरा हो जायगा .डाक्टर आ रहें हैं इंजेक्शन लिखेंगे जो तीन हज़ार का होगा .और फिर मेरा हिसाब पूरा हो जायेगा
.मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूँ ---सोमेश हूँ ,विवेक सिंह ---मुझे पहचानो --प्राणों की भीख मांगती मेरी आँखे - मैं दूब रहा था और तुम हाथ हिला रहे थे .पर तुम को दया न आई .मैं दूब गया विवेक मैं दूब गया "
डाक्टर साहब यह सब क्या बक रहा है ?सोमेश कैसे आ सकता है ?उसे मरे बीस साल से ज्यादा हो चुका है । बचा लीजिये वह मेरा बेटा राहुल है .ओह सोमशतुम ऐसा नहीं कर सकते ।
अनीता और विवेक को खींच कर बाहर ले जाया गया. इंजेक्शन पर इंजेक्शन -- अवाक ---मैं देख रहां हूँ उसके चेहरे पर न पीड़ा ,न दुःख मगर उसकी आँखों में और अधरों पर एक विद्रूप सी व्यंग भरी मुस्कान साफ़ नजर आ रही थी .शून्य की ओर ताकते ताकते उसके प्राण पखेरू उड़ गए .मैंने खुली आँखें बंद करदीं .और तुरंत बाहर निकल गया हम उसे बचा न सके थे .

रविवार, 10 जनवरी 2010

संशय

कैसे होगा जीवन पार ?
नैतिकता की नाव है मेरी
, और सत्य पतवार ।
कैसे होगा जीवन पार?

भव सागर उत्ताल तरंगें ,
दानवता ,विकराल तरंगें,
दीन हीन ,भयभीत सरलता
आशंकित मन ,और उमंगें ।
बचपन की गहरी रेखाएं
, ईश्वर ,न्याय सत्य की जीत
माँ ने भेजा, जग में जीत,
गहरा सागर ,नौका छोटी ,
पग पग पर चुभती है तीखी ,
बिछी हुई काँटों की पंक्ती ,
थर थर काँप रही है धरती,
आस्थाएं क्यूँ दोल रहीं हैं ।
क्यों अंधियारा घिरता लगता ,
क्यों आशा की जोती सहमती ।
क्यों कोई बिजली न चमकती ?
कैसे होगा जीवन पार ?
नैतिकता की नाव है मेरी
और सत्य पतवार.