सोमवार, 29 मार्च 2010

हिसाब किताब {क्रमश;]

मुझसे रहा नहीं गया .मैं दरवाजा खोल कर तेज़ी से प्राइवेट वार्ड की ओर बढ़ा .उसकी माँ रो रही थी .'डाक्टर साहब उसकी आँखें ,उसकी आवाज़ ,उसका भाव ---वह - राहुल नहीं ---सोमेश है डाक्टर .मेरे हजबैंड विवेक का बिजनेस पार्टनर .वह कह रहा है 'मुझे पहचानो --देखो मेरी आँखे --आप सब ने मेरे बिजनेस , मेरे हक का .,पचास लाख तीन हज़ार रुपया धोखा दे कर ले लिया था याद कीजिए स्विमिंग पूल में डूबने से सोमेश की मौत हुई थी .धक्का किसने दिया था ?तुम समझ ही गई होगी? इतने वर्षों की बीमारी में मैंने एक एक पाई वसूल ली है बीएस यही आखिरी तीन हज़ार बच रहें हैं और फिर मेरा हिसाब किताब पूरा हो जायगा .डाक्टर आ रहें हैं इंजेक्शन लिखेंगे जो तीन हज़ार का होगा .और फिर मेरा हिसाब पूरा हो जायेगा
.मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूँ ---सोमेश हूँ ,विवेक सिंह ---मुझे पहचानो --प्राणों की भीख मांगती मेरी आँखे - मैं दूब रहा था और तुम हाथ हिला रहे थे .पर तुम को दया न आई .मैं दूब गया विवेक मैं दूब गया "
डाक्टर साहब यह सब क्या बक रहा है ?सोमेश कैसे आ सकता है ?उसे मरे बीस साल से ज्यादा हो चुका है । बचा लीजिये वह मेरा बेटा राहुल है .ओह सोमशतुम ऐसा नहीं कर सकते ।
अनीता और विवेक को खींच कर बाहर ले जाया गया. इंजेक्शन पर इंजेक्शन -- अवाक ---मैं देख रहां हूँ उसके चेहरे पर न पीड़ा ,न दुःख मगर उसकी आँखों में और अधरों पर एक विद्रूप सी व्यंग भरी मुस्कान साफ़ नजर आ रही थी .शून्य की ओर ताकते ताकते उसके प्राण पखेरू उड़ गए .मैंने खुली आँखें बंद करदीं .और तुरंत बाहर निकल गया हम उसे बचा न सके थे .

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