स्वतंत्रता को उत्तरदायित्व से अलग नहीं रखा जा सकता । स्वतंत्रता सापेक्ष है .जब इसे स्वयम के पक्ष में देखा जाये तो यह और भी अधिक मर्यादित तथा संवेदनशील हो उठती है। Aआज़ादी हमें विवेक से चुनाव करने का अधिकार देती है .मनमानी करने का नहीं । नियंत्रण और मार्ग दर्शन , नैतिक मूल्यों से ,सामाजिक वातावरण की सद्भावना से प्रेरित होकर अपनी इच्छानुसार कार्य चुनने और करने की स्वतंत्रता ही सच्ची स्वतंत्रता है ।
एक इकाई है व्यक्ति किसी परिवार की , समाज की । और बाकी सभी सम्बन्ध उसमें उसी प्रकार गुंथें हैं की उससे अलग ही नहीं किया जा सकता .माता -पिता , भाई -बहन,बाबा -दादी ,बुआ -फूफा उनके परिवार ,मित्र ,बंधू बांधव , सहयोगी, लम्बी फेहरिस्त हो सकती है किसे छोड़ा जाय ? यह असंभव है , इसलिए सबके हितों का ध्यान रखते हुए जो सबसे अधिक निकट हो उसे और व्यक्तिगत रूचि ,इच्छा की भी पूर्ति करती हो वही स्वतंत्रता है , वही वांछनीय है ,करनीय है ,प्रशंशनीय है इसमें कोई दो राय नहीं .
शनिवार, 27 नवंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें