रविवार, 4 जनवरी 2015

Sardiyuun ki dhuup

                 सर्दियों की धूप                       
सर्दियों की धूप
कुनमुनी-सी गुनगुनी सी धूप
मेरे घर आंगन की धूप
कभी झांकती उपर नभ से
कभी घूम जाती मुंडेर पर
मेरे घर आंगन की धूप
और कभी खिल-खिल, ठिलठिलकर
अकड़ दिखाती, ढ़ीठ बनी
छा जाती तन पर-----
मेरे घर आंगन की धूप
अहा! सुनहली, कभी रूपहली
कभी लालिमा लिये हुये
पोर-पोर को कर आहलादित
मेरे घर आंगन की धूप।
प्यारी कुनमुन, शान्त मनोहर
मेरे घर आंगन की धूप।।
कुनमुनी सी गुनगुनी सी
मेरे घर आंगन की धूप।

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