मंगलवार, 26 जुलाई 2011

छा जाउंगा

मुझे डूबता सूर्य न समझो
नई ऊर्जा लेकर मैं फिर आ जाउंगा
कल नभ पर मैं जोर शोर से छा जाउंगा.
कण कण है मेरा आह्लादित
सतरंगी हैं किरणें मेरी,
जीवन देतीं ,राह दिखाती ।
मुझे देख कर हंसती गाती ,
मुझे डूबता सूर्य न समझो .
नई ऊर्जा लेकर मैं फिर आ जाऊँगा।
खिल जायेंगे फूल मनोहर ,
खुल जायेंगी आँखे चंचल
तितली , भंवरे, डोलडोल कर ,
पक्षी के कलरव पर प्रतिपल
नाच उठेंगी ,थिरक उठेंगी ,
नदियाँ छल -छल ....
मुझे डूबता सूर्य न समझो .

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

क्या सारा दोष मीडिया का ही है?

परिवर्तन सृष्टि का नियम है.चलते रहना जीवन और रुक जाना मृत्यु .समाज के विकास में भी यही नियम है .मान्यताएं बदलती हैं ,आवश्यकता के अनुसार विचार बदलतें हैं .सोच और दिशायें बदलतीं हैं .नहीं बदलतें हैं तो शाश्वत नैतिक मूल्य .नैतिक मूल्यों उनके व्यवहारिक प्रयोग में निरंतर गिरावट देखी जा रही है । माता - पिता , परिवार के सदस्य , विद्यालय -अध्यापक ,शिक्षा शास्त्री सब हैरान परेशान हैं । मौखिक रूप में हर आदमी अपने -अपने स्तर पर दया करुना ,परोपकार , भाई चारा ,प्रेम , आदर ,सम्मान -सहयोग आदि के बारे में समझातें रहतें हैं .लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं .जितना नैतिक शिक्षा पर बल दिया जा रहा है लोग सतर्कता और सावधानी बरत रहे हैं उतने ही भयानक और विपरीत प्रभाव हमें दिखाई पद रहे हैं ।
क्या है इसका कारण ? कहाँ हम चूक रहे हैं ? कौन है जिम्मेदार ? कौन सी चीजें हमें पतन की ओर
खींच रहीं हैं ?सभी अपने- अपने दायित्यों को सही बता कर मीडिया पर ही दोष दे रहें हैं .क्या सारा दोष मीडिया का ही है?मीडिया वही तो दिखा रहा है जो समाज देखना चाहता है .समस्या कहाँ क्या कोई बता सकेगा ?