रविवार, 10 जनवरी 2010

संशय

कैसे होगा जीवन पार ?
नैतिकता की नाव है मेरी
, और सत्य पतवार ।
कैसे होगा जीवन पार?

भव सागर उत्ताल तरंगें ,
दानवता ,विकराल तरंगें,
दीन हीन ,भयभीत सरलता
आशंकित मन ,और उमंगें ।
बचपन की गहरी रेखाएं
, ईश्वर ,न्याय सत्य की जीत
माँ ने भेजा, जग में जीत,
गहरा सागर ,नौका छोटी ,
पग पग पर चुभती है तीखी ,
बिछी हुई काँटों की पंक्ती ,
थर थर काँप रही है धरती,
आस्थाएं क्यूँ दोल रहीं हैं ।
क्यों अंधियारा घिरता लगता ,
क्यों आशा की जोती सहमती ।
क्यों कोई बिजली न चमकती ?
कैसे होगा जीवन पार ?
नैतिकता की नाव है मेरी
और सत्य पतवार.