रविवार, 28 दिसंबर 2008
बाबू और बिल
मैं एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत था। बिलों को सरकारी दफ्तर में जमा करना, बिल पास करवाने के लिए बाबुओं और अधिकारिओं का पास जाना, अनुरोध कर चैक प्राप्त करना मेरे लिए, मेरी नौकरी को बचांने के लिए जरूरी था। एक बार में बहुत परेशान था। बिल जमा किए हुए बीस दिन से अधिक हो चुका था। अधिकारी रोज़ मुझे बुलाते, बातें करतें और कहते "आज नही"। हर बार यही उत्तर पाकर मैं उनके सामने हठ कर बैठ ही गया। उन्हें भी शायद मुझ पर दया आ गई थी। बोले - आप फिर आ गए!!! हो जाएगा, हो जाएगा मगर आज नही। मैंने दुःख से कहा, "सर please दो लाख का बिल है"। "अब आप इतने दिनों से चक्कर लगा रहें हैं तो आपको बता ही दूँ" अधिकारी ने कहा। इधर आ jayien। उनहोंने मुझे अपने कुर्सी के बगल मैं बुलाया और टेबल के तीन दराजों को दिखाते हुए कहा "यह देखिये, तीन दराज़ हैं। पहला - आज नही, दूसरा - अभी नही, सबसे नीचे तीसरा - कभी नही। जिन बिलों के साथ "कुछ" दिया जाता है अडवांस में उसी के अनुसार उन्हें इसमे डाल दिया जाता है। जो कुछ नही देते उनके बिल कभी नही में, जो कुछ देते हैं वे "अभी नही"। तो आपका बिल "आज नही" दे दराज़ में है। आशा है आप समझ गए होंगे। परसेंटेज के हिसाब से दो सौ रुपये मैंने निकल कर दे दिया। और दूसरे दिन दो लाख का चैक मेरे हाथ में था.
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